नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम में संशोधनों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अनुसूचति जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम में संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पहले से ही लंबित पुनर्विचार याचिका के साथ सुनवाई की जाएगी।पिछले साल पिछले साल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में सेक्शन 18 जोड़ दिया था जिसने इस तबके के लहिलाफ अपराधों को गैर जमानती बना दिया था। ऐसे मामलों में सरकारी कर्मचारी के खिलाफ भी कार्रवाई करने के लिए पुलिस को इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। वर्तमान में रिटायर हो चुके जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने पिछले साल मार्च में एससी-एसटी अत्याचार के मामलों में तुरंत गिरफ्तार पर रोक लगाकर जांच की बात कही थी। अपने आदेश में कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को नियुक्त करने वाले प्राधिकरण से इजाजत लेनी होगी। गैर सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस अधीक्षक की अनुमति अनिवार्य थी। जिसके बाद एससी एसटी समुदाय की नाराजगी और राजनीतिक दबाव में आकर केंद्र ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाली थी मगर कोर्ट ने अपने आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मामले के अग्रिम जमानत के प्रावधान करने के अपने आदेश को सही मानते हुए कहा कि यह जरूरी है। पीठ ने कहा कि इस मामले में अधिकतम दस वर्ष की सजा का प्रावधान है जबकि न्यूनतम सजा छह महीने है। जब न्यूनतम सजा छह महीने है, तो अग्रिम जमानत का प्रावधान क्यों नहीं होना चाहिए। वह भी तब जबकि गिरफ्तारी के बाद अदालत से जमानत मिल सकती है। जिसके बाद केंद्र ने कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए दोनों सदनों में अध्यादेश पेश किया था।
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